
रिपोर्टर सतीश नारनौल हरियाण
नारनौल :- नगर ही नहीं क्षेत्र के एकमात्र बर्फी के बेताज बादशाह, स्वाद के जादूगर सूरज भान सैनी अब नहीं रहे l उनके चले जाने से क्षेत्र की जुबान रस और स्वाद विहीन हो गई है l सर्वश्रेष्ठ बर्फी का पर्याय बने सूरजभान सैनी के हाथों की बर्फी का स्वाद चखने वाली वर्तमान तीन पीढ़ियां का स्वाद उनके जाने की ख़बर सुनकर कसैला हो गया है l नारनौल से लेकर अमेरीका, रूस, चीन, आस्ट्रेलिया, जॉर्जिया, न्यूजीलैंड तक रहने वाले भारतीय जब वापस लौटते थे तो पासपोर्ट के साथ साथ सुरज भान की बर्फी ले जाना नहीं भूलते थे l उनके जाने से इलाके के स्वाद में एक अजीब सा फीकापन आ गया है l सूरज भान महज एक हलवाई नहीं थे, वे क्वालिटी के पर्याय बन चुके थे, वे स्वाद का विकल्प बन चुके थे, वे बर्फी के ब्रांड बन चुके थे l
यह सूरज भान की बर्फी की खासियत कहें या उनके हाथ का जादू की केवल पिज्जा और बर्गर पसंद करने वाली पीढ़ी, हल्दीराम, mac Donald पर जान लुटाने वाली पीढ़ी, कैडबरी का डेयरी मिल्क को आदर्श मानने वाले बच्चे भी सूरज भान की बर्फी को बहुत पसंद करते थे l क्षेत्र के लोगों का शायद ही ऐसा कोई रिश्तेदारों हो जिसने सूरज भान की बर्फी का स्वाद न चखा हो l नारनौल नगरी के पुराने इलाके में प्रसिद्ध मानक चौक । मात्र 4 फिट चौड़ी गली दर्जियान, पुरानी, साधारण, लकड़ी के दरवाजे की दुकान, दुकान पर रखी लकड़ी की बैंच, वहाँ खूबसूरत मुस्कान और अतुल्य सफाई के साथ बैठे सूरज भान अब शायद नजरों को नसीब नहीं होंगे l उस गली से उठती महक और बर्फी की मिठास मुसाफिर हों या स्थानीय बाशिंदे हर किसी के कदम यहां रुकते जरूर थे । सूरज भान बर्फी वाले – इस दुकान पर दशकों पुराने स्वाद को चौथी पीढ़ी आज भी बरकरार रखे हुए है। स्टील की ट्रे में रखी डबल सिकाई वाली बर्फी का स्वाद हर किसी की जुबान पर जादू का काम करता था l तीज त्योहारों पर लंबी लाइनों के बाद भी क्या मजाल की स्वाद और स्तर में फर्क आ जाए l
सूरज भान की दुकान हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला का पर्याय बन चुकी थी l बिना किसी पद, पैसे, जाति, धर्म के भेदभाव के पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर लाइन लगी रहती थी l मंदिर मस्जिद बैर कराते, मेल कराती मधुशाला के स्थान पर हम कह सकते हैं कि मेल करवाती सूरज भान की बर्फी शाला l आज भले ही नगर में मिठाई की सैकड़ों दुकाने हैं लेकिन बर्फी और उसकी शुद्धता की जब भी बात आती है, गली दर्जियान में बनने वाली सूरज भान की बर्फी का नाम खुद-ब-खुद हर किसी की जुबां पर आ ही जाता है। ऐसा इसलिए कि दो-चार वर्ष नहीं बल्कि पांच दशक से उनकी बर्फी अपनी विश्वसनीयता बरकरार रखते हुए कद्रदानोें की जुबां पर राज कर रही है। सूरज भान आज रहे नहीं, किन्तु उनकी अगली पीढ़ी उनकी बनाई साख को बचाए रखने का बीड़ा उठाए हुए हैं। स्वाद के ऐसे जादूगर को दिल की गहराई से नमन करते हैं और श्रधा सुमन अर्पित करते हैं l