Chhattisgarh New : रायगढ़ लोकसभा की ताज़ा तस्वीर पूर्व लोकसभा सांसद विष्णुदेव गोमती साय को बंगला मिला आदिवासी सांसद राधेश्याम राठिया आज भी बेघर
रायगढ़ लोकसभा की राजनीति इन दिनों एक अनोखे व्यंग्य की तरह सामने आई है।

ब्यूरो चीफ राकेश कुमार साहू जांजगीर चांपा छत्तीसगढ़
पूर्व सांसद विष्णुदेव साय और गोमती साय को उनके कार्यकाल के दौरान लोकसभा क्षेत्र रायगढ़ में सरकारी बंगले की सुविधा दी गई थी। लेकिन मौजूदा आदिवासी सांसद राधेश्याम राठिया को चुने जाने के एक वर्ष बाद भी बंगला नहीं मिला। यानी जो सांसद जनता के बीच से निकला है और संसद में उनकी आवाज़ उठाने के लिए चुना गया है, वही आज ठिकाने के लिए भटक रहा है।रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र में यह परंपरा रही है कि सांसदों को उनके कार्यकाल में सरकारी बंगला आवंटित होता रहा है। इस परंपरा के तहत विष्णुदेव साय और गोमती साय को आवास सुविधा मिली। लेकिन मौजूदा सांसद राधेश्याम राठिया इस सुविधा से वंचित रह गए हैं। यह सिर्फ़ एक सुविधा का अभाव नहीं, बल्कि आदिवासी सांसद के सम्मान और गरिमा से सीधा समझौता है। रवि भगत का फेसबुक हमला : भाजपा के ही पूर्व युवा नेता और भाजयुमो के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष रवि भगत ने इस मामले पर सोशल मीडिया में तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा क्या रायगढ़ लोकसभा के आदिवासी सांसद को बंगला पाने के लिए अधिकारियों की चौखट पर नाक रगड़नी पड़ेगी उनकी यह टिप्पणी भाजपा संगठन और सरकार की कथनी–करनी के अंतर को उजागर करती है। रवि भगत ने यह भी इशारा किया कि अगर सांसद जैसे संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को ही ठिकाना नहीं मिलता, तो यह पूरे सिस्टम की विफलता है रायगढ़ की जनता आज सवाल कर रही है जब विष्णुदेव साय और गोमती साय को बंगला मिला तो मौजूदा सांसद को क्यों नहीं पहले जनता सीधे सांसद निवास जाकर समस्या रख देती थी, अब सांसद का कोई स्थायी पता ही नहीं। क्या आदिवासी सांसद केवल वोट बैंक की राजनीति तक सीमित हैं लोग यह भी कह रहे हैं कि मौजूदा स्थिति ने सांसद और जनता के बीच सीधा संवाद तोड़ दिया है। जनप्रतिनिधि से मिलने के लिए अब गाँव–गाँव, गली–गली भटकना पड़ रहा है। व्यंग्य के तीखे तंज़ पूर्व सांसदों को बंगले का सुख मौजूदा सांसद को धूल और धक्के। बीजेपी के मंच पर आदिवासी गौरव का नारा व्यवहार में आदिवासी सांसद बेघर। जहाँ नेता–अफसरों के पास आलीशान आवास हों वहाँ सांसद का बेघर रहना लोकतंत्र पर व्यंग्य है। 
सत्ता चैन से बैठी है, सांसद सम्मान से वंचित है। सिस्टम पर गंभीर सवाल : यह विवाद केवल बंगले तक सीमित नहीं है। यह मुद्दा प्रशासन की प्राथमिकताओं राजनीतिक संवेदनशीलता और आदिवासी समाज के प्रतिनिधित्व से सीधे जुड़ा है। अगर रायगढ़ जैसे बड़े संसदीय क्षेत्र का सांसद ही आवास सुविधा से वंचित है तो आम जनता के हालात का अंदाज़ा लगाना कठिन नहीं। यह तस्वीर भाजपा के आदिवासी प्रेम की सच्चाई को सामने लाती है मंच पर आदिवासी समाज का सम्मान व्यवहार में उनके प्रतिनिधि की उपेक्षा। सवाल सीधा और साफ है पूर्व सांसद विष्णुदेव साय और गोमती साय को बंगले मिले। मौजूदा आदिवासी सांसद राधेश्याम राठिया को ठिकाना नहीं मिला। जनता सवाल कर रही है पूर्व भाजयुमो अध्यक्ष ने तंज़ कसा है लेकिन सत्ता मौन है। यह स्थिति सिर्फ़ सांसद राठिया की नहीं बल्कि पूरे आदिवासी समाज के सम्मान से जुड़ी है। अगर जनप्रतिनिधि को ही बेघर सांसद बना दिया जाए तो लोकतंत्र की नींव पर सवाल उठना स्वाभाविक है।




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