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हरितालिका तीज : श्रद्धा, आस्था और समर्पण का पर्व

बाघमारा/धनबाद : सावन-भादो के पावन संगम पर मनाया जाने वाला हरितालिका तीज पर्व मंगलवार को क्षेत्र में श्रद्धा एवं उमंग के साथ मनाया गया। सुबह से ही महिलाओं ने मंदिरों में जाकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना की। कई स्थानों पर भजन-कीर्तन और सामूहिक व्रत कथा का आयोजन हुआ।

धार्मिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। उसी तपस्या की स्मृति में यह पर्व मनाया जाता है। सुहागिन महिलाएँ इस दिन निर्जला व्रत रखकर अपने पति के दीर्घायु एवं अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं, वहीं अविवाहित कन्याएँ मनचाहा वर पाने की अभिलाषा से इस व्रत का संकल्प लेती हैं।

रामायण से जुड़ा संदर्भ

पौराणिक ग्रंथों में व्रत और तपस्या की महिमा का विशेष उल्लेख मिलता है। रामचरितमानस में भी माता सीता का जीवन पतिव्रता और समर्पण का प्रतीक बताया गया है—

“सिय राममय सब जग जानी।करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥”

यह चौपाई दर्शाती है कि जब नारी अपने जीवन में आस्था, विश्वास और समर्पण को धारण करती है तो उसका जीवन स्वयं दिव्य हो उठता है। हरितालिका तीज का व्रत इसी भाव का ज्वलंत उदाहरण है।

स्थानीय परंपरा और उल्लास

क्षेत्र के विभिन्न मंदिरों में महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा और श्रृंगार में भाग लिया। सुहाग की वस्तुएँ—चूड़ी, बिंदी, सिंदूर और मेहंदी—का विशेष महत्व रहा। कई जगहों पर महिलाओं ने लोकगीत गाकर और नाच-गाकर इस पर्व को उत्सव का रूप दिया।

हरितालिका तीज केवल व्रत-उपवास का पर्व नहीं, बल्कि नारी के त्याग, विश्वास और मर्यादा का प्रतीक है। आज भी इसकी प्रासंगिकता उतनी ही गहरी है, जितनी प्राचीन काल में थी।

Dhanbad Jharkhand News @ Bureau Chief Mithilesh pandey

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