
तेजस्वी को “जननायक” बताकर पप्पू यादव ने बदला रुख, 2025 चुनाव से पहले बिहार में नए राजनीतिक समीकरणों के संकेत
पटना | 25 अगस्त 2025
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक सरगर्मियां तेज़ हो गई हैं। इस बार सुर्खियों में हैं पूर्णिया से निर्दलीय सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव, जिन्होंने अब तक राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव की आलोचना करते आए हैं, लेकिन हालिया बयानों से बदले समीकरणों के संकेत मिल रहे हैं।
राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के दौरान सार्वजनिक मंच से पप्पू यादव ने तेजस्वी यादव की जमकर तारीफ करते हुए उन्हें “जननायक” की संज्ञा दी। उन्होंने तेजस्वी की नेतृत्व क्षमता और युवाओं में उनकी लोकप्रियता की सराहना करते हुए कहा कि “बिहार का भविष्य युवा नेतृत्व के हाथों में सुरक्षित है।”
यह वही पप्पू यादव हैं जिन्होंने पहले तेजस्वी को “अनुभवहीन”, “परिवारवादी” और “नेतृत्व में कमजोर” करार दिया था। 2015 से लेकर 2024 तक के चुनावी दौरों में पप्पू यादव लगातार तेजस्वी पर हमलावर रहे। 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब पप्पू यादव पूर्णिया से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में थे, तब तेजस्वी यादव ने भी मंच से उनका विरोध करते हुए कहा था, “अगर हमें वोट नहीं देना है तो विपक्षी गठबंधन को दे दें।”
क्या है समीकरण बदलने की वजह?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पप्पू यादव का यह बदला रुख केवल निजी संबंध सुधारने की कोशिश नहीं, बल्कि 2025 विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर की गई रणनीतिक चाल है। तेजस्वी यादव को समर्थन देकर वे खुद को महागठबंधन के भीतर एक प्रभावशाली किरदार के रूप में स्थापित करना चाहते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, पप्पू यादव की तेजस्वी के प्रति नरम होती भाषा विपक्षी एकजुटता को मजबूती दे सकती है। इससे महागठबंधन को पूर्वी बिहार में एक अनुभवी नेता के रूप में पप्पू यादव का साथ मिल सकता है, जो भाजपा के खिलाफ एकजुट मोर्चा बनाने में सहायक होगा।
तेजस्वी की प्रतिक्रिया का इंतजार
हालांकि पप्पू यादव ने साफ तौर पर तेजस्वी की तारीफ की है, लेकिन अब तक तेजस्वी यादव या राजद की ओर से इस बदले रुख पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि क्या यह समीपता सिर्फ चुनावी मजबूरी है या भविष्य की किसी बड़ी रणनीति का हिस्सा।
बिहार में सियासी गठजोड़ और समीकरण कितने बदलेंगे, इसका फैसला तो वक्त करेगा, लेकिन इतना तय है कि पप्पू यादव का यह रुख आने वाले चुनावी परिदृश्य में एक नया मोड़ ला सकता है।



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