
राज्य में नीरा उत्पादन ने पकड़ी रफ्तार: अब तक 1.80 करोड़ लीटर से अधिक इकट्ठा, 10 हजार टैपर्स को मिला रोजगार
पटना। बिहार में नीरा उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है और यह ग्रामीण रोजगार का एक मजबूत जरिया बनता जा रहा है। अप्रैल से 10 जुलाई तक के नीरा सीजन में राज्यभर में 1 करोड़ 80 लाख लीटर से अधिक नीरा इकट्ठा की जा चुकी है। इसमें से 1 करोड़ 39 लाख लीटर से अधिक नीरा की बिक्री भी की जा चुकी है।
राज्यभर में 2309 नीरा बिक्री काउंटर
नीरा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए राज्यभर में 2309 बिक्री काउंटर संचालित किए जा रहे हैं। मद्य निषेध एवं उत्पाद विभाग के आयुक्त रजनीश कुमार सिंह ने बताया कि नीरा नशामुक्त पेय होने के साथ-साथ स्वास्थ्यवर्धक भी है। इसमें विटामिन-C के साथ कई एंजाइम होते हैं, जो पाचन में सहायक होते हैं। साथ ही, इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है, जिससे यह मधुमेह रोगियों के लिए भी उपयुक्त है।
नीरा में कैल्शियम, आयरन, पोटैशियम, सोडियम और फास्फोरस जैसे खनिज भी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसे पीने से किसी तरह का नशा नहीं होता है।
मुख्यमंत्री नीरा संवर्धन योजना से मिला सहारा
राज्य सरकार द्वारा इस वर्ष शुरू की गई मुख्यमंत्री नीरा संवर्धन योजना से 10 हजार 646 टैपर्स और 11 हजार 176 ताड़ के पेड़ मालिक लाभान्वित हो रहे हैं। योजना को जीविका के माध्यम से लागू किया गया है और सभी लाभार्थियों को DBT के माध्यम से प्रोत्साहन राशि दी जा रही है।
जिलेवार आंकड़ों के अनुसार, टैपर्स की सर्वाधिक संख्या वैशाली (1632) में है। इसके बाद गया (1184), नालंदा (880), मुजफ्फरपुर (749) और पटना (664) का स्थान है। वहीं, पेड़ मालिकों की संख्या में भी वैशाली (648) शीर्ष पर है, इसके बाद नालंदा (509), नवादा (254), गया (207) और पटना (190) हैं।
नीरा: स्वास्थ्य और स्वावलंबन की राह
सरकार की यह पहल न केवल ग्रामीण आजीविका को संबल दे रही है, बल्कि नीरा को स्वास्थ्यवर्धक विकल्प के रूप में जन-जन तक पहुंचा रही है। नीरा अब केवल पारंपरिक पेय नहीं, बल्कि एक आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्यकारी आंदोलन बनता जा रहा है।