लालच की भेंट चढ़ी तीन जिंदगियां चकगर्बी आंदोलन के पीछे अब चलेगी शहर में ई-बसें

लालच की भेंट चढ़ी तीन जिंदगियां चकगर्बी आंदोलन के पीछे अब चलेगी शहर में ई-बसें

 

 

सत्यनारायण इंडियन क्राइम रिपोर्टर 

खाजूवाला में रुपये दोगुने करने के लालच में गई तीन जिंदगियां अपने पीछे कई सवाल छोड़ गईं हैं। अभी तक पुलिस यह भी पता नहीं लगा पाई है कि वाकई यह मामला तंत्र-मंत्र का था या इसके पीछे कोई दूसरी ही कहानी थी। दक्षिण भारत से राजस्थान के सीमांत पश्चिमी क्षेत्र के बीच फैली इस कहानी में अभी तक यही साफ हुआ है कि तीन लोगों की मौत हुई है। एक गफ्फार है, जिसके घर में ही यह सब हुआ। दो लोग कर्नाटक से आए कथित तांत्रिक बी. शिवा नाम के साथी शैतानसिंह और विक्रमसिंह के रूप में पहचाने गये हैं, जिनके शरीर पर चोट के निशान भी मिले हैं, लेकिन सभी की मौत का कारण जहरीला हलवा बताया जा रहा है, जिसे बी. शिवा ने बनाकर सभी में बतौर प्रसाद बांटा। कहानी इतनी भर है कि एक कमरे में 50 लाख रुपये रखकर सभी दुगुने होने का इंतजार कर रहे थे। इस बीच प्रसाद भी बना। प्रसाद खाने के बाद साजिश की आशंका हुई तो आस-पड़ौस से लोगों को भी बुला लिया गया। फिर जो हुआ, वह रहस्य है। तीन मौत सामने हैं। कुछ गिरफ्तार हैं। कुछ और गिरफ्तारियां होनी हैं। कॉलम लिखे जाने तक पचास लाख बरामद भी हो चुके हैं। कथित तांत्रिक बी. शिवा अब तक फरार है। पुलिस कड़ी से कड़ी जोडने में लगी है कि आखिर उस रात क्या हुआ था। कर्नाटक का बताया जा रहा बी. शिवा मिले तो कुछ पता चले या फिर कोई चश्मदीद, जो सही-सही जानकारी दे सके। कहानी जो भी हो, गये हुए लौट नहीं सकते।

 

अभिनव भी अब नहीं लौटेगा! अहमदाबाद से लंदन के लिए उड़े एयर इंडिया के विमान हादसे की टीस बीकानेर तक महसूस की गई। श्रीडूंगरगढ़ के पूर्व विधायक किसनाराम के पौत्र अभिनव परिहार लंदन में रह रहे अपने बीवी-बच्चों को लेने जा रहा था, लेकिन विमान हादसे में उसकी भी जान चली गई। बीकानेर-श्रीडूंगरगढ़ में गमगीन माहौल रहा। पिछले दिनों बीकानेर से हवाई सेवा शुरू होने से उत्साह में बीकानेर वासियों के मन में डर बैठ गया है, क्योंकि यहां पुराने हवाई जहाज ही भेजे जा रहे हैं।

 

बहरहाल, बड़ा मुद्दा बीडीए बनने के बाद शुरू हुई ‘आपाधापी’ का है। भूमाफियाओं को यह बिल्कुल भी पसंद नहीं है कि बीकानेर में बीडीए बने, उन्हें लगता है कि इसकी जरूरत ही नहीं थी। इधर, प्रशासनिक अधिकारी हैं कि बीडीए के रूप में बीकानेर को विकसित करने के लिए जी-जान लगा चुके हैं, क्योंकि निश्चित रूप से सरकारी खजाने में धन आएगा। सरकारी जमीन को खाली कराने की प्रक्रिया शुरू हुई तो विरोध-प्रदर्शन भी हुए। चकगर्मी में लोगों के पास रजिस्ट्रीशुदा जमीनें हैं। घर बन गये हैं, लेकिन इन घरों को तोड़ा इसलिए जा रहा है कि ये घर सरकारी जमीनों पर बने माने गये हैं। इस पर कॉलोनाइजर्स उन लोगों को भी ले आए हैं, जिनसे जमीन खरीदी थी, लेकिन उनके पास खसरा नंबर सही नहीं है। कागजों में जमीन की बेचवानी सही है, लेकिन मौके पर जहां निर्माण हुआ और जो जमीन बिकी, अलग-अलग है।

 

बहुत ही उलझा हुआ मामला है और इस पर आरोप यह कि यहां पहुंचे हुए नेताओं की जमीनें हैं। ऐसे में लामबंदी भी ऊंचे स्तर पर हो रही है। यह संभव नहीं है कि सारी जमीन को सरकारी मानकर सभी को मालिकाना हक दिया जाए और न यह संभव है कि जिन किसानों ने अपना खसरा बताकर जमीन बेच दी, उसके सही खसरे की निशानदेही हो। बहुत पेचीदा प्रश्न है और अगर प्रशासन सख्त नहीं हुआ तो जवाब नहीं मिलना। बहरहाल, बीकानेर को बीडीए बनवाने वाले विधायक जेठानंद व्यास अपने घुटने का आपरेशन करवा चुके हैं। केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल जोड़बीड़ में लव-कुश वाटिका का उदघाटन करने आए तो उनके सामने चकगर्बी का मामला भी आया। कांग्रेस वाले भी कह रहे हैं कि अगर बीडीए बनवाना इतना आसान होता तो हम कभी का बनवा लेते।

 

भाजपा की शहर और देहात कार्यकारिणी को घोषित करना दोनों ही अध्यक्षों के बूते की बात नहीं है। सुमन छाजेड़ और श्याम पंचारिया जो कार्यकारिणी लेकर गये हैं, उनकी कतरब्योंत होनी तय है।

नगर निगम को केंद्र सरकार से 85 ई-बसें मिलीं हैं। सिटी बसें इस शहर में बुरी तरह फेल होने के बाद अब ई-बसों का संचालन करना बड़ी टास्क है। हालांकि अभी तक रूट फाइनल नहीं हुआ है और इन बसों के चार्जिंग-प्वाइंट के लिए चिह्नित की गई जमीन पर भी विवाद शुरू हो गया है। अगर इच्छाशक्ति प्रबल रही तो निदान भी हो जाएगा। इतनी सारी बसों को सही तरीके से चलाया जाए तो आवागमन की बड़ी समस्या का सामधान हो सकता है।

 

पीबीएम अस्पताल में एक रुपये कॉपी की बजाय नौ रुपये कॉपी लेने वाले कियोस्क वालों पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है, इस बीच फिर से शिकायतें सिर उठाने लगी है। कोरोना के 12 मरीज हो गए हैं, जिसमें से एक नर्सिंगकर्मी भी शामिल है। नीट यूजी के आए परिणामों में बीकानेर से लगभग 250 लोगों का सलेक्शन उत्साहजनक है।

 

रास्ते कहां खत्म होते हैं जिंदगी के सफर में

 

  1. मंजिल तो वहां हैं जहां ख्वाहिशें थम जाएं
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