Haryana News प्रभु राम की चरण पादुका ले वन से वापिस अयोध्या लौटे भरत
राम वनवास, दशरथ अंत व भरत मिलाप के दिल को छू लेने वाले मार्मिक दृश्यों ने किया भावविभोर

रिपोर्टर सतीश नारनौल हरियाण
नारनौल श्री धार्मिक रामलीला ट्रस्ट चांदुवाडा द्वारा आयोजित 73वीं रामलीला मंचन के छठे दिन मंगलवार रात्रि राम वनवास, दशरथ देह त्याग व भरत मिलाप की लीला का मनमोहक मंचन मंझे हुए कलाकारों द्वारा किया गया। रामलीला के ट्रस्टी अशोक पाण्डे ने बताया कि रविवार को डॉ मनोज वर्मा के कुशल निर्देशन में दीपक हरित ने राम, राजेश सोनी ने सीता, अनिल चौहान ने लक्ष्मण, मनोज वर्मा ने राजा दशरथ, बलवंत सैनी ने आर्य सुमन्त, सत्यनारायण वर्मा ने महर्षि वशिष्ठ, जोगेन्द्र छनपडिया ने भरत, भवानी वर्मा ने शत्रुघ्र, दिनेश सैनी ने माता कौशल्या, विकास चौहान ने कैकेयी व अंशुल हरित ने निशाद राज के किरदारों में अपने जानदार अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुगध कर दिया। मंगलवार को पंचायत समिति सचिव राकेश बंसल व शालिनी बंसल मुख्यअतिथि रहे तथा सुधीर यादव, संजय शुक्ला, विष्णु शर्मा, डॉ सुरेन्द्र मित्तल, डॉ मेघा मित्तल, महेश भालोठिया, मोहित भारद्वाज एडवोकेट व भारत भूषण शर्मा विशिष्ठ अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। ट्रस्ट प्रधान संजय गर्ग ने कार्यकारिणी के साथ सभी अतिथिगणों को पटका व माला पहनाकर सम्मानित किया। सहनिर्देशक बलवंत सैनी ने बताया कि छठे दिन की लीला में कोपभवन के उपरांत प्रभु राम वनवास गमन के लिए इजाजत लेने अपनी माता कौशल्या के पास जाते हैं और मां कौशल्या के साथ उनके मार्मिक संवादों ने दर्शकों को भावविभोर कर दिया। उनके बाद रानी सीता भी महलों को छोडकर उनके साथ वन में चलने की जिद करती हैं, भगवान राम के लाख समझाने के बावजूद उन्हे सीता माता को साथ ले जाने के लिए विवश होना पडता है। फिर प्रभु राम के अनुज लक्ष्मण उनसे कहते हैं कि राम के बिना तो लक्ष्मण का जीवन ही व्यर्थ है। इसलिए या तो मैं आपके वनवास को चलूंगा अन्यथा अभी ये देह त्याग दूंगा। इस प्रकार प्रभु राम माता सीता व लक्ष्मण के साथ वन को प्रस्थान करते हैं। आर्य सुमन्त उन्हे जंगल में छोडने के लिए उने साथ जाते है। राम के वन गमन का समाचार सुनकर पिता दशरथ अधीर हो जाते हैं और श्रवण कुमार के माता पिता के श्राप अनुसार पुत्र वियोग में अंतत: अपने प्राण त्याग देते हैं। उधर जैसे ही भरत को ये सब समाचार प्राप्त होते हैं, वो अपनी माता कैकेयी को खूब खरी खोटी सुनाते हैं और अपने भाई राम को वन से वापिस लाने उनके पास वन में पहुंच जाते हैं। तब भगवान राम व भ्राता भरत के परस्पर मिलन के मार्मिक दृश्य को देख दर्शकों की आंखे नम हो गईं। लेकिन अंतत: भगवान राम अपने भाई को समझाते हैं कि जीवन में माता पिता के वचन की आन से बढकर कोई राज पाट नहीं होता। इसलिए तुम अयोध्या लौटकर अयोध्या वासियों एवं परिवार का ख्याल रखो। तब भरत भी प्रभु राम की चरण पादुका अपने साथ लेकर जाते हैं कि मैं अयोध्या में सिर्फ आपका प्रतिनिधि बनकर रहूंगा और प्रजा की रक्षा करूंगा। मंगलवार की लीला को यहीं विराम दिया गया। इस अवसर पर संरक्षक सत्यनारायण हरित, शिम्भु दयाल गर्ग, संजय गर्ग, नरेन्द्र जैन, विष्णु शर्मा, बलवान सैनी, दिनेश भार्गव, सुभाष कौशिक, रेखा मित्तल, डॉ राधेश्याम, सोमदत्त, सोमदेव आदि का रामलीला मंचन में प्रमुख रूप से सहयोग रहा।

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