रिपोर्टर राकेश कुमार साहू जांजगीर चांपा छत्तीसगढ़
जांजगीर:- बिलासपुर (मस्तूरी ) भटचौरा के प्री मैट्रिक अनूसूचित जनजाति और अनूसूचित जाति शासकीय बालक छात्रावास भटचौर में आश्रमों में रहने वाले छात्रावासी बच्चे बेबसी का जीवन जीने को मजबूर हैं। आलम यह है कि इनकी सुरक्षा के लिए अधीक्षक की नियुक्ति की जाती है, लेकिन अधीक्षक ही गायब हो जाएं, तो इन बच्चों का भविष्य कैसे सुरक्षित होगा। यह अपने आप में ही सवालिया निशान है। पर वहां नियुक्त होने वाले अधीक्षक और कर्मचारी इस कदर लापरवाह हैं कि वे हॉस्टल में उन बच्चों के साथ न रहकर अपनी मनमानी कर रहे हैं। जिन्हें नियंत्रित करने वाला कोई दिखाई नहीं पड़ता। मस्तुरी ब्लॉक के भटचौरा के शासकीय बालक आश्रम में बच्चों को न तो अच्छा खाने के लिए सब्जी मिल मिल रहा है और न ही उनकी आवासीय व्यवस्था ठीकठाक है। मजे की बात तो यह है कि यहां पदस्थ अधीक्षक तरुण केशरवानी,आलोक शर्मा छोटे छोटे बच्चों को चपरासियों के हवाले कर के अपनी मनमानी करते है । माह में कुछ दिन पहुंचकर रजिस्टर में दस्तखत कर अपनी कर्तव्य पूरा कर लेते हैं। साथ ही माह भर की तनख्वाह भी उठा लेते हैं। वहां रहकर पढऩे वाले बच्चों ने बताया कि उन्हें दाल-सब्जी सब्जी में सिर्फ सरकारी बड़ी और चने की ही सब्जी मिलती है । विद्यार्थियों का कहना था कि न तो उन्हें नहाने के लिए साबुन दिया जाता है और न ही लगाने के लिए तेल। अधीक्षक महीने में कुछ दिन ही रहते हैं। जिससे बच्चों की देख-रेख ठीक ढंग से नहीं हो पाती। उन्होंने बताया 30अनुसूचित जनजाति और 20 अनुसूचित जाति के लिए सीट है जो की छात्रावास में केवल सिर्फ अनूसूचित जनजाति के 12,13 बच्चे ही आश्रम में रहते हैं। तब यह स्थिति है। अगर पूरे 50 बच्चे आश्रम में रहते, तो उन्हें कुछ भी नहीं मिलता। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले में दुर्गम अंचलो के आश्रम छात्रावास में बच्चों की किस तरह ख्याल रखा जा रहा है।