Haryana News नारनौल के समीप गांव कुलताजपुर में श्री शिव महापुराण कथा के तीसरे दिन आचार्य बजरंग शास्त्री ने किया शिव लीला का वर्णन

रिपोर्टर सतीश नारनौल हरियाण
नारनौल के समीप ग्राम कुलताजपुर में चल रही श्री शिव महापुराण कथा के तीसरे दिन आचार्य बजरंग शास्त्री जी महाराज ने शिव पार्वती विवाह का अद्भुत वर्णन किया। उन्होंने ‘शिव पुराण’ में शिव जी के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए बताया कि शिव भस्म को बहुत ही पसंद करते हैं। भस्म भगवान भोलेनाथ का श्रृंगार मानी जाती है। मान्यता है कि जो भी भक्त शिव को भस्म चढ़ाता है, वह उससे जल्दी प्रसन्न होते हैं और उसके सभी दुखों को हर लेते हैं। माना ये भी जाता है कि भस्म चढ़ाने से वह संसार की मोह माया से मन मुक्त पा लेता हैं। आचार्य जी ने कहा कि भस्म सिर्फ पुरुष ही चढ़ा सकते हैं महिलाओं का शिवलिंग पर भस्म चढ़ाना शुभ नहीं माना जाता है। शिव के भस्म लगाने के पीछे पौराणिक मान्यता हैं। भगवान शिव को प्रिय भस्म के पीछे पौराणिक मान्यता बहुत ही प्रचिलित है। कहा जाता है कि जब देवी सती ने अपने पिता के यज्ञ में देह त्याग दी थी, उसके बाद भोलेनाथ उनको लेकर तांडव कर रहे थे। इस दौरान उनके वियोग को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के मृत शरीर को भस्म कर दिया था। उस दौरान शिव से सती का वियोग सहन नहीं हुआ और उन्होंने उसने मृत शरीर की भस्म को अपने तन पर रमा लिया था। माना जाता है कि तब से ही महादेव को भस्म बहुत ही प्रिय है। महान कथावाचक बजरंग शास्त्री ने बताया कि हिंदू धर्म में हमेशा से ही रुद्राक्ष के महत्व की चर्चा रही है। वैसे तो रुद्राक्ष एक फल की गुठली मात्र है, लेकिन पुराणों की मानें तो रुद्राक्ष के दिव्य बीज भगवान शिव के आसुओं से बने हैं। ऐसे में इसे भगवान शिव का साक्षात स्वरूप माना जाता है। तमाम तरह के रत्नों में रुद्राक्ष का अपना एक अलग स्थान है। भले ही रुद्राक्ष बाकी रत्नों कि तरह प्रकाशमान न हो, मगर ये भगवान शिव को बेहद प्रिय है। ये छोटे-छोटे बीज स्वयं में भोलेनाथ का वरदान हैं, यही कारण है कि शिव भक्त इसे किसी न किसी रूप में धारण करते हैं।
रुद्राक्ष के बारे में वर्णन करते हुये शास्त्री जी ने कहा कि रुद्राक्ष पहनने से इंसान की मानसिक और शारीरिक परेशानियां दूर होती हैं। जो इसे धारण कर भोलेनाथ की पूजा करता है उसे जीवन के अनंत सुखों की प्राप्ति होती है। तमाम आकारों में पाए जाने वाले रुद्राक्ष के हर एक मुख की एक अलग विशेषता होती है।
आचार्य जी ने एक मुख से 14 मुखी रुद्राक्ष तक का विस्तार से वर्णन किया। आचार्य जी ने बताया कि शिव पार्वती विवाह में शिवजी बारात लेकर पार्वतीजी के यहां पहुंचे। कहते हैं कि शिवजी की बारात में हर तरह के लोग, गण, देवता, दानव, दैत्यादि थे। शिव पशुपति हैं, मतलब सभी जीवों के देवता भी हैं, तो सारे जानवर, कीड़े-मकोड़े और सारे जीव उनकी शादी में उपस्थित हुए। यहां तक कि भूत-पिशाच और विक्षिप्त लोग भी उनके विवाह में मेहमान बन कर पहुंचे। इस बारात को देखकर माता पार्वती की मां बहुत डर गई और कहा कि वह अपनी बेटी का हाथ ऐसे दुल्हे के हाथ में नहीं सौंपेगी। माता पार्वती ने स्थिति को बिगड़ते देखकर शिवजी से कहा कि वे हमारे रीति रिवाजों के अनुसार तैयार होकर आएं। इसके बाद शिवजी को दैवीय जल से नहलाकर पुष्पों से तैयार किया गया और उसके बाद ही उनकी शादी हुई। विवाह के दौरान वर-वधू दोनों की वंशावली घोषित की जानी थी। एक राजा के लिए उसकी वंशावली सबसे अहम चीज होती है जो उसके जीवन का गौरव होता है। तो पार्वती की वंशावली का बखान खूब धूमधाम से किया गया। परंतु जब शिवजी की वंशावली के बखान करने की बारी आई तो सभी चुप हो गए। बाद में नारदजी ने बात को संभाला और शिवजी के गुणों का बखान किया। इस अवसर पर महंत प्रेमदास महाराज, शिवकुमार महता, निरंजन महता, सुभाष महता, बाबुलाल, सुमित महता, आनंद महता , मनोज सहित सैकड़ों की संख्या में माताएं-बहने बुजुर्ग व युवा उपस्थित थे।

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