जमीन पर बैठीं गभवर्ती, कुर्सियों से गायब ‘भगवान’, आईसीयू में स्तनपान करवाने गैलरी में होता है इंतजार

कटनी. जिले में प्राइवेट मेडिकल कॉलेज बनाने की कवायदों के बीच बेहतर उपचार उपलब्ध करवाने का दावा कर रहे जनप्रतिनिधि और अफसर वर्तमान में उपलब्ध जिला अस्पताल में भी व्यवस्थाओं को सुधारने का प्रयास नहीं कर रहे हैं। अव्यवस्थाओं के चलते अस्पताल को खुद इलाज की दरकार हैं। यहां गर्भवती व प्रसूताओं के लिए बेहतर इंतजाम हैं। बाल व नवजात गहन चिकित्सा इकाई में भर्ती मासूम बच्चे के परिजन बाहर परेशानियों से जूझ रहे हैं। आलम यह है कि अस्पताल में न तो अपने कक्षों में डॉक्टर उपलब्ध हो रहे हैं और न ही मरीजों को समय पर बेहतर उपचार मिल रहा है। पत्रिका टीम ने अस्पताल का जायजा लिया तो ढेरों खामियां नजर आईं।
जिला अस्पताल में प्रवेश करते ही पंजीयन काउंटर पर मरीजों की कतार लगी रही। बुजुर्ग, बुखार पीडि़त युवा, महिलाएं सभी एक कतार में नजर आए। आगे बढ़ते ही डॉक्टरों के कक्ष का नजारा अलग ही रहा। अधिकांश कक्ष के बाहर मरीज तो मिले लेकिन डॉक्टर नजर नहीं आए। नर्स किसी डॉक्टर के वार्ड में राउंड पर होने का हवाला दे रही थीं तो कोई डॉक्टर के किसी जरूरी काम से कुछ समय के लिए जाना बता रहा था। कतार में खड़े मरीज अपने मर्ज से राहत पाने के लिए डॉक्टर (धरती के भगवान) का इंतजार कर रहे थे।
थककर फर्श पर बैठ गईं गर्भवती महिलाएं
जिला अस्पताल के ठीक पीछे मातृ एवं शिशु के उपचार के लिए नई बिल्डिंग बनी हैं। यहां भी हाल पुरानी बिल्डिंग की तरह नजर आए। सिर्फ एक पंजीयन काउंटर के सामने 50 से अधिक महिलाएं कतार लगाकर खड़ी थीं। इनमें अधिकांश महिलाएं गर्भवती थीं तो पर्ची कटवाकर अपना उपचार कराना चाहती थीं। महिलाओं की कतार होने के कारण उनके साथ आए पुरुष दूर खड़े रहे और बीमार खुद कतार में खड़ी थीं। कई गर्भवती महिलाएं थककर फर्श में ही बैठ गईं और अपनी बारी आने का इंतजार करती रहीं।
न पर्याप्त कुर्सियां, न बेहतर इंतजाम
मातृ एवं शिशु परिचर्या में उपचार के लिए महिलाएं ही पहुंचती हैं। अधिकांश महिलाएं गर्भवती होती हैं तो सैकड़ों की संख्या में बीमार होती हैं। नई बिल्डिंग होने के बावजूद यहां बेहतर इंतजाम नहीं है। पंजीयन काउंटर की संख्या कम होने के कारण कतार लगती है तो कुर्सियां कम होने के कारण महिलाओं को बैठने के लिए स्थान नहीं मिलता।
डॉक्टर की लिफ्ट चालू, मरीज की बंद
तीन मंजिला इस अस्पताल में वार्डों तक पहुंचने के लिए महिलाओं व वृद्धों की सांसे फूल रही हैं। शासन की ओर से सुविधा के लिए यहां दो लिफ्ट मशीनें तो लगाई गई हैं लेकिन मरीज इनका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। यहां मौजूद सिक्योरिटी गार्ड ने बताया कि डॉक्टर की लिफ्ट चालू है लेकिन मरीजों की लिफ्ट बंद रखी गई है। क्योंकि मरीज दिनभर लिफ्ट का उपयोग करते हैं और खराबी आ जाती है। ऐसी स्थिति में अपने चित-परिचित को प्रसव के बाद यहां देखने पहुंचने वाले परिजन रैंप से होकर वार्ड तक पहुंचते हैं।
गहन चिकित्सा इकाई के ये हैं हाल
जिला अस्पताल में नवजात गहन चिकित्सा इकाई व बाल चिकित्सा गहन चिकित्सा इकाई का संचालन किया जा रहा है। प्रसव के बाद बच्चों को आवश्यकतानुसार यहां रखा जाता है। दोनों ही स्थानों पर कई दिनों तक बच्चे भर्ती होते हैं। यहां जन्म के 18 दिन तक बच्चों को भर्ती कर इलाज किया जाता है। एसएनसीयू में भर्ती होने वाले नवजातों की माताओं के लिए मदर वार्ड नहीं है। प्रसूताएं एसएनसीयू वार्ड के बाहरदर्द से कराहते हुए बैठी नजर आती हैं। यह वह प्रसूताएं हैं, जिनके नवजातों का एसएनसीयू में इलाज चल रहा है। नर्स और कर्मचारियों के कहने पर इन्हें बार-बार नवजात को स्तनपान कराने के लिए अंदर जाना पड़ता है।
इनका कहना
कई बार डॉक्टर वार्ड में राउंड लेने के दौरान अपने कक्ष पर मौजूद नहीं रहते। डॉक्टरों का निर्धारित समय तक ड्यूटी पर मौजूद रहना अनिवार्य है। यदि कोई डॉक्टर समय पर मौजूद नहीं रहते हैं तो जांच कराएंगे। इसके अलावा सभी इंतजाम किए जा रहे हैं। मातृ एवं शिशु परिचर्या में गहन चिकित्सा ईकाई का निर्माण किया जा रहा है।
डॉ. यशवंत वर्मा, सिविल सर्जन, जिला