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संत रसिक मोहन दास की ख्याति का बज रहा डंका

(गोविंद राम हरितवाल) देश की सनातन संस्कृति के प्रचार प्रसार, उसके संवर्धन और उसे अक्षुण्ण बनाए रखने में संत महात्माओं का बहुत बड़ा योगदान है। इन्हीं संत महात्माओं की भक्ति , तपस्या शक्ति और मार्गदर्शन के बल पर आज भी यह सनातन संस्कृति जीवित है, जबकि इस संस्कृति को नष्ट करने के लिए आतताई आक्रांताओ , अन्य धर्मो की अनेक मिशनरियों ने सदियों से सनातन संस्कृति को नष्ट करने का भरपूर प्रयास किया, किंतु हमारे इन साधु संतों और धर्म गुरुओं की बदौलत हमारी यह सनातन संस्कृति आज भी विश्व में अपने परचम की पताका फहरा रही है। ऐसे ही एक संत श्री रसिक मोहन दास जी महाराज खेतड़ी के भोपालगढ़ पर स्थित गोपीनाथ जी के मंदिर में विराजते हैं। इनका जन्म लखनऊ के अग्रवाल परिवार में मंगसिर सुदी दशमी विक्रम संवत 2008 को हुआ है। इनका जन्म का नाम राम अवतार था । इन्होंने वहीं पर इंटरमीडिएट तक की शिक्षा ग्रहण की, किंतु इनका मन सांसारिक बंधनों में बधने का नहीं था। इन्होंने युवावस्था में ही घर छोड़ दिया और सलेमाबाद आकर इन्होंने निंबार्क संप्रदाय के पीठाधीश्वर श्री श्रीजी महाराज को अपना गुरु बनाकर सन्यास धर्म की शिक्षा ग्रहण की। विक्रम संवत 2027 में दीक्षित होकर आप चला चौकड़ी के एक राजपूत संत के साथ वहां आए। इसके पश्चात आप खेतड़ी के पूज्य संत मक्खन दास जी के साथ चिंतन करने लगे। आप यहां 2 वर्ष रहे। इसके बाद आप आप भोपालगढ़ स्थित चुंडावत माता के मंदिर में तपस्या करने के लिए गए। यहां आप तीन दिन रहे , तभी रात में सती माता चुंडावत ने स्वप्न में कहा कि तुम भोपालगढ़ में जो गोपीनाथ जी का मंदिर है उसमें जाकर रहो। तब आप इस जर्जर मंदिर में आकर रहने लगे। जब आप यहां इस मंदिर में पधारे उस समय मंदिर में मूर्तियां नहीं थी और यह मंदिर जर्जर हालत में था। अपने यहां आकर मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा करवाई और जर्जर हाल मंदिर को नया आवरण दिया। आपके आने से पूर्व इस मंदिर की पूजा अर्चना का भार भोपालगढ़ के विख्यात पंडित बलदेव दास मिश्रा किया करते थे। मिश्रा जी राजघराने के बालकों को भी शिक्षा प्रदान करते थे। यह मंदिर गढ़ के तत्कालीन राजा बख्तावर सिंह जी की मुंह बोली चुंडावत रानी के आग्रह पर निर्मित करवाया गया था। मंदिर परिसर में उसी समय नर्वदेश्वर शिव लिंग व हनुमान जी की मूर्तियां स्थापित करवाई गई थी। खेतड़ी ठिकाने द्वारा मंदिर की पूजा अर्चना के लिए पुजारी को वेतन बतौर 18 रुपए दिए जाते थे। इनमें से छह आने अर्थात 37 नए पैसे काट दिए जाते थे। इन कांटे गए पैसों से गौशाला व अनाथ लोगों के भोजन की व्यवस्था की जाती थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यह व्यवस्था बंद कर दी गई थी।संवत 2035 से न केवल भोपालगढ़ के गोपीनाथ जी के मंदिर की ही बल्कि भोपालगढ़ में स्थित अन्य मंदिरों के भी प्रबंधन में पूरी भागीदारी संत रसिक मोहनदास जी महाराज निभा रहे हैं। आप मुड़िया (महाजनी) भाषा के प्रख्यात विद्वान हैं । आपने पिछले 37 वर्षों से मौन व्रत धारण कर रखा है। आने वाले जिज्ञासु भक्तों की आप लिखकर उनकी समस्याओं का निदान बताते हैं। श्रद्धालु समाधान पाकर हंसी-खुशी से वापस लौटते हैं। आपका लिखा हुआ आपके पास रहने वाले ट्रांसलेटर ही पढ़ कर उनके उत्तर बताते हैं । मंदिर में सदावृत्त एवं भंडारे का आयोजन प्रतिदिन होता रहता है। आप कृष्ण के परम उपासक हैं। 21 जून 1992 से मंदिर में प्रतिदिन हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे। का संकीर्तन 24 घंटे आश्रम में निरंतर चलता रहता है। आश्रम में दीन दुखी व अतिथि और आगंतुक साधुओं को दवा और भोजन दे कर उनकी नित्य सेवा की जाती है। अरावली पर्वत की गोद में बने इस मंदिर में आप जैसे सिद्ध साधक तपस्वी की वजह से ही लोग आकर पुण्य का भागी बनना चाहते हैं। आपकी इस ख्याति को सुनकर राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत भी आपके आश्रम में पधार चुके हैं। आपका आशीर्वाद पाकर भैंरों सिंह शेखावत भारत के उपराष्ट्रपति पद को सुशोभित कर पाए। आश्रम में अन्नकूट, शरद पूर्णिमा , जन्माष्टमी, मंदिर का वार्षिकोत्सव और संत के जन्मोत्सव का पर्व हर्षोल्लाह और उमंग के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम के बीच मनाया जाता है। इन विशाल आयोजनों पर पूरी शालीनता भक्तगणों के सहयोग से देखने को मिलती है। शरद पूर्णिमा पर दमा एवं श्वांश के रोगियों को खीर के साथ दवा खिलाई जाती है। इस अवसर पर सैकड़ो कार्यकर्ता और महाराज के भक्त व्यवस्था करने में लगे रहते हैं। यह दिन किसी मेले से काम नहीं होते। बच्चों को टॉफियां , खिलौने तथा अनेक प्रकार की वस्तुएं भक्तों द्वारा निशुल्क भेंट की जाती हैं। इतनी भीड़ होने के बावजूद भी कहीं हल्ला गुल्ला या धक्का मुक्की कुछ नहीं होता । सिर्फ कार्यकर्ता ही व्यवस्था को संभालते हैं । भोपालगढ़ में इस आश्रम के अलावा गोसाई जी का, शिवजी का , देवी जी का तथा रानी सती चुडावत जी के मंदिर भी बने हुए हैं। रानी चुंडावत जी के मंदिर के अलावा अन्य सभी मंदिरों के प्रबंधन का दायित्व संत रसिक मोहनदास जी महाराज जी के माध्यम से ही होता है। गढ़ में पंचमुखी शिवजी का मंदिर सिद्ध मंदिरों में एक है। श्रावण मास में शिव भक्तों का इस मंदिर में तांता लगा रहता है। लोगों का मानना है कि मंदिर में जो भक्त सच्चे मन से मनौती मांगता है , भगवान शिव उसकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। आश्रम में रसिक मोहन दास जी द्वारा गौशाला का भी सफल संचालन किया जा रहा है। ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार और इतिहासकार है)__संपादक

Sikar Rajasthan News @ Bureau Chief Kapil Dev sharma

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