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Uttar Pradesh News राध्य को। वो तो राम हैं, जो अपने भक्त से अपनी पहचान करवाते हैं, तभी तो कभी हनुमान के श्रीराम तो कभी सबरी के राम कहलाते हैं।

रिपोर्टर वसीउद्दीन आगरा उत्तर प्रदेश

आगरा:-राध्य को। वो तो राम हैं, जो अपने भक्त से अपनी पहचान करवाते हैं, तभी तो कभी हनुमान के श्रीराम तो कभी सबरी के राम कहलाते हैं। रविवार को श्रीमनःकामेश्वर बाल विद्यालय, दिगनेर में चल रहे श्रीराम लीला महोत्सव में अनुसुइया उपदेश, सीता हरण, सबरी पर कृपा, सुग्रीव मित्रता और बाली वध प्रसंग हुए। जिसमें सर्वाधिक प्रभावित और संदेश प्राप्त हुआ शबरी पर प्रभु राम की कृपा का। प्रभु राम ने अपनी भक्त को नवधा भक्ति का उपदेश दिया। मंचन करते कलाकारों ने उपस्थित हर श्रद्धालु का हृदय भक्तिभाव से परिपूर्ण कर दिया। किशाेरी रास लीला संस्थान के पंडित गोविंद मिश्रा ने कहा कि भगवान ने प्रथम भक्ति संतों का संग बताया है। इसी प्रकार गुरु भक्ति का भी उपदेश भगवान ने दिया है। श्रीमहंत योगेश पुरी और मठ प्रशासक हरिहर पुरी के सानिध्य में चल रहे भव्य आयोजन के माध्यम से नवधा भक्ति के उपदेश पूर्ण हो रहे हैं। इससे पूर्व महोत्सव का आरंभ स्थानीय बच्चों द्वारा करवाया गया, ताकि उन्हें संस्कार और संस्कृति से जोड़ा जा सके। लीला प्रसंग में सीता हरण व बालि वध का आकर्षक मंचन कर कलाकारों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। दिखाया गया कि सोने का मृग देख सीता जी ने उसे पाने की जिद की। भगवान राम ने मृग का पीछा किया। माया रूपी मृग भगवान राम को जंग की ओर दूर लेकर चला गया। हाय राम− हाय राम की आवाज सुन सीता जी परेशान हो गयीं और कहा कि मेरे राम संकट में हैं। उनकी सहायता के लिए लक्ष्मण को भेजा। लक्ष्मण ने जाते समय कुटी के चारों ओर रेखा खींच दी और माता सीता से उसके पार न जाने को कहा। लक्ष्मण के जाते हीी रावण ब्राह्मण वेश में पहुंचा और भिक्षा के बहाने उनका हरण कर लिया।
राम व लक्ष्मण सीता की खोज में वन− वन भटकते व विलाप करते किष्किंधा पर्वत पहुंचे। यहां भगवान राम व हनुमान जी कर पहली भेंट हुयी। हनुमान जी ने भगवान राम को सुग्रीव से मिलाया। राम की सुग्रीव से मित्रता हुयी। सुग्रीव ने अपनी सारी समस्या भगवान राम को बतायी। इसके बाद बाली व सुग्रीव का युद्ध हुआ और भगवान राम ने बाली का वध कर दिया।
मठ प्रशासक हरिहर पुरी ने बताया कि सोमवार को लंका दहन, विभिषण शरणागति, सेतु बंध, रामेश्वर की स्थापना, अंगद रावण संवाद हों

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