Haryana News ‘बिगड़ती संस्कृति, बढ़ती समस्याएं’ विषय पर विचार-गोष्ठी आयोजित

रिपोर्टर सतीश नारनौल हरियाण
युवा पीढ़ी में प्रगतिशीलता के नाम पर बढ़ रही है स्वच्छंदता : डॉ. ‘मानव’ मनुमुक्त ‘मानव’ मेमोरियल ट्रस्ट, नारनौल द्वारा ‘बिगड़ती संस्कृति, बढ़ती समस्याएं’ विषय पर एक विचार-गोष्ठी का आयोजन स्थानीय सैक्टर-1, पार्ट-2 स्थित अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र मनुमुक्त भवन में गत शाम किया गया। जीवीएम गर्ल्स काॅलेज, सोनीपत के पूर्व प्रोफेसर और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विजयकुमार वेदालंकार की अध्यक्षता में आयोजित इस विचारोत्तेजक गोष्ठी में वैश्य गर्ल्स कॉलेज, समालखा की पूर्व प्राचार्या डॉ. आभा त्यागी विशिष्ट अतिथि वक्ता और पशुपालन विभाग, हरियाणा सरकार, पानीपत के पूर्व उपनिदेशक डॉ. यशदेव त्यागी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। अपने संबोधन में डॉ. आभा त्यागी ने देश में बढ़ रही महिला-उत्पीड़न की घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि मात्र सख्त कानून बनाने से इन्हें रोक पाना संभव नहीं है। इसके लिए सामाजिक-सांस्कृतिक और जागरूकता भी जरूरी है। डॉ. यशदेव त्यागी ने स्पष्ट किया कि बच्चों को प्रारंभ से ही धर्म और संस्कृति का ज्ञान दिया जाना चाहिये। इसके लिए स्कूली पाठ्यक्रम में शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा का समावेश जरूरी है। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. विजयकुमार वेदालंकार ने निराशा प्रकट करते हुए कहा कि बढ़ती सांस्कृतिक विकृतियों के कारण आज हमारा पूरा पारिवारिक और सामाजिक ढांचा चरमरा रहा है। इसके लिए हमारी युवा पीढ़ी जितनी जिम्मेदार है, उससे अधिक उत्तरदायी उनके अभिभावक हैं, जिन्होंने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा और श्रेष्ठ संस्कार नहीं दिये। इससे पूर्व विषय- प्रवर्तन करते हुए चीफ ट्रस्टी और सिंघानिया विश्वविद्यालय, पचेरी बड़ी (राजस्थान) में हिंदी-विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ. रामनिवास ‘मानव’ ने कहा कि लिव-इन और लव जिहाद के बढ़ते मामलों के लिए एक धर्म-विशेष को ही दोष देना उचित नहीं है, हिंदू भी बराबर के दोषी हैं। उन्हें सोचना होगा कि हिंदू लड़कियां ही इसकी शिकार क्यों होती हैं, अन्य धर्मों की लड़कियां इस रैकेट में क्यों नहीं फंसती। डॉ. ‘मानव’ ने स्पष्ट किया कि आज अधिकतर पढ़े-लिखे हिंदू अपने धर्म और संस्कृति से विमुख हो चुके हैं, वहीं पाश्चात्य संस्कृति के दुष्प्रचार और फिल्मों के दुष्प्रभाव के कारण हमारी संस्कारहीन युवा पीढ़ी में प्रगतिशीलता के नाम पर स्वच्छंदता बढ़ रही है, जो अंततः उसके पतन का कारण बनती है। लगभग डेढ़ घंटे तक चली इस गोष्ठी में ट्रस्टी डॉ. कांता भारती, पूर्व संस्कृत प्राध्यापक दलजीत गौतम, पूर्व प्राचार्य सुभाष कश्यप और सरोज कश्यप ने भी अपने विचार रखे तथा सामाजिक और राष्ट्रीय संदर्भ में धर्म और संस्कृति के महत्त्व को रेखांकित करते हुए स्पष्ट किया कि अच्छी शिक्षा और ऊंचे संस्कारों से ही समाज को पतन के गर्त में गिरने से बचाया जा सकता है।




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