
रिपोर्टर अंसारी रफीक नूरी अहमदाबाद गुजरात
हज़रत पीर मुबारक शहीद बावा (रहमतुल्लाह अलैहे) का 508वां उर्स मुबारक जिसे महम्मदाबाद के पास सोजली गांव के पास आए रोजा रोजी की दरगाह के रूप में जाना जाता है, बड़ी धूमधाम से मनाया गया। पूरे कार्यक्रम का आयोजन महमेदाबाद उर्स कमेटी ने किया था। अहमदाबाद के एक सामाजिक कार्यकर्ता बुरहानुद्दीन कादरी ने भी शिरकत की और अकीदा की एक प्रति भेंट की। इस मौके पर महमेदाबाद के अफजल हुसैन महमूद मिया सैयद, लब्बाक यूथ फोर्स के राष्ट्रीय सचिव अंसारी रफीक नूरी, अलीमिया मालेक, आरिफ भाई सैयद, सलूभाई मालेक, सलीमभाई मालेक, नदीम भाई मालेक, सभाभाई मलक, सलीम भाई मलक, सलीमभाई मालेक बुजुर्ग शामिल थे.उपस्थित थे।लब्बैक यूथ फोर्स के राष्ट्रीय सचिव अंसारी रफीक नूरी के अनुसार,अमीर उल उमरा सैयद मुबारक बुखारी ने 1526 से 1537 ईस्वी तक सुल्तान कुतुबुद्दीन बहादुर शाह के शासनकाल के दौरान सेनापति का पद संभाला था। उनकी मृत्यु के बाद उन्हें इसी विशाल स्थान में दफनाया गया था। जहां बाद में उनके बेटे सैयद मीरान बुखारी ने 1560 ई. में 2 लाख रुपये की लागत से एक विशाल मकबरा बनवाया। जो रोजा के नाम से प्रसिद्ध है। उनके मकबरे से सटे एक अन्य मकबरे में उनकी पत्नी के दो भाइयों, सैफुद्दीन और निजामुद्दीन की कब्रें हैं, जिन्हें रोजी के नाम से जाना जाता है। रोजा में सैयद मुबारक बुखारी के बगल में उनके बेटे सैयद मीरान का मकबरा है। जबकि रोजी में सैयद मुबारक बुखारी के परिवार की महिलाओं की कब्रें भी हैं।