
रिपोर्टर देवेन्द्र कुमार जैन भोपाल मध्य प्रदेश
व्ही.आई.टी. भोपाल विश्वविद्यालय, सीहोर में 25 नवम्बर की रात में किए गए विद्यार्थियों के उग्र प्रदर्शन एवं आगजनी के समाचार को संज्ञान में लेते हुए प्रकरण में जांच हेतु 3 सदस्यीय जांच-समिति का गठन किया गया समिति का जांच प्रतिवेदन विभाग को प्राप्त होने के उपरांत म.प्र. निजी विश्वविद्यालय (स्थापना एवं संचालन) अधिनियम, 2007 की धारा 41(1) के अंतर्गत कारण बताओ जारी कर कहा गया की सात दिन के अंदर विभाग को स्पष्टीकरण उपलब्ध करायें कि क्यों नहीं विश्वविद्यालय के विरुद्ध धारा 41 (2) अंतर्गत अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। विश्वविद्यालय में लगभग 15000 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं, जो परिसर के अंदर स्थित विभिन्न छात्रावासों में निवास करते हैं। छात्रावासों में मेस की सेवाएं अत्यन्त असंतोषजनक हैं। प्रबंधन ने मेस संचालन हेतु सेवा प्रदाता एजेंसियों को अनुबंधित तो किया है किंतु प्रभावी नियंत्रण की कमी पाई गई है। भोजन, जलपान की गुणवत्ता पर ज्यादा छात्रावासियों की प्रतिक्रिया नकारात्मक है। छात्राओं द्वारा पेयजल में दुर्गंध आने की बात समिति को बताई गई। 23 छात्रों तथा 12 छात्राओं को पीलिया बीमारी से ग्रस्त होने के तथ्य को प्रबंधन ने समिति के समक्ष स्वीकार किया प्रबंधन द्वारा परिसर को एक किले की तरह रखा गया है। परिसर की चारदीवारी के भीतर प्रबंधन के स्वयं के कानून चलते हैं। किसी को भी उनके संबंध में बात करने, प्रतिक्रिया देने की अनुमति नहीं है। परिसर में तानाशाही रवैया अपनाया जाता है इसका बड़ा उदाहरण यह है कि सीहोर जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को मुख्य प्रवेश द्वार पर 2 घंटे रोककर रखा गया। विद्यार्थियों ने समिति को अवगत कराया कि उन्हें शिकायत करने पर प्रताड़ित होने का खतरा बना रहता है। अनुशासन के नाम पर आई-कार्ड जब्त करना, परीक्षा में शामिल नहीं होने देना, प्रायोगिक परीक्षाओं में कम अंक देना या फेल कर देने की धमकी भी दी जाती है। भोजन व्यवस्था की शिकायत पर सुनवाई नहीं होती तथा कह दिया जाता है कि जो बना है, वही खाना पड़ेगा।भयपूर्ण वातावरण विश्वविद्यालय में अनुशासन की व्यवस्था का आधार आपसी आत्मविश्वास ना होकर भयपूर्ण अनुशासन व्याप्त होने की स्थिति समिति के संज्ञान में आई। विश्वविद्यालय प्रबंधन आत्ममुग्धता एवं अति आत्मविश्वास की स्थिति में था कि वे किसी भी स्थिति को संभाल सकते है। विद्यार्थियों में असंतोष बढ़ता रहा, परंतु विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा उन्हें संतुष्ट करने की दिशा में कोई यथोचित कदम नहीं उठाए गए। जब विश्वविद्यालय प्रबंधन से व्यवस्थाएं अनियंत्रित हो गई एवं उग्र विद्यार्थियों पर कोई नियंत्रण नजर नहीं आया, तब जाकर प्रबंधन ने रात्रि 2 बजे पुलिस प्रशासन को सूचित किया और पुलिस ने आकर व्यवस्थाएं संभाली । अव्यवस्थित स्वास्थ्य एवं चिकित्सा केन्द्र विश्वविद्यालय परिसर स्थित स्वास्थ्य केन्द्र में कितने विद्यार्थियों को पीलिया की बीमारी हुई इसका कोई सटीक रिकार्ड नहीं था। बीमारी फैलने की जानकारी होने के बावजूद प्रशासन इसे छुपा रहा था और लीपा-पोती के प्रयास किए जा रहे थे। किसी तरह के प्रीवेंटिव स्टेप्स या कंट्रोल के प्रयास नहीं किए गए। जानकारी लेने पर इन प्रश्नों के प्रति प्रबंधन की रुचि भी नजर नहीं आई। प्रबंधन बीमारी नियंत्रण के लिए किये किए प्रयासों के संबंध में कोई सकारात्मक अभिलेख प्रस्तुत करने में विफल रहा। केन्द्र में सुविधाएं अपर्याप्त पाई गई तथा क्लिनिकल स्टेब्लिशमेंट एक्ट के अनुसार इसका पंजीयन भी नहीं पाया गया। मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट का नितांत अभाव है। पेयजल एवं अन्य जल संसाधनों का नियमित माइक्रोबॉयोलॉजिकल ऑडिट का भी पालन नहीं किया जा रहा है। अनुशासन के विरुद्ध विद्यार्थियों में आक्रोश पनप रहा था, जिसे समझने में प्रबंधन पूर्णतः असफल रहा। विद्यार्थियों ने अपने साथियों को बीमार होते हुए देखा तथा अस्पताल ले जाने के स्थान पर उन्हें अपने घर जाने की सलाह प्रबंधन द्वारा दी गई तो वे उत्तेजित हो गए। उत्तेजना को संभालने के स्थान पर वॉर्डन एवं गार्ड ने उनके साथ दुर्व्यवहार एवं मारपीट की, जिससे विद्यार्थियों की उग्रता में वृद्धि हुई। पारदर्शिता का अभाव एवं अधिकारों का केन्द्रीयकरण विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता का अभाव है। अनेक अवसरों पर विद्यार्थियों पालकों को लिखित में सूचित नहीं किया जाता। स्पष्टता के अभाव में विद्यार्थी भटकते रहते हैं। समिति को 2 विद्यार्थी मिले, जो परिचय पत्र के लिए परेशान हो रहे थे तथा प्रबंधन उन्हें स्पष्ट नहीं कर रहा था कि परिचय पत्र कब मिलेंगे और कौन प्रदान करेगा। समिति ने अनुभव किया कि विश्वविद्यालय प्रशासन में अधिकार उच्च स्तर पर केवल दो, तीन अधिकारियों तक ही केन्द्रित है, बाकी अधिकारियों की भूमिका मात्र आरनामेंटल ही है। विश्वविद्यालय प्रबंधन का असहयोगात्मक रुख समिति ने पाया कि विश्वविद्यालय का रुख सहयोगात्मक नहीं था। प्रबंधन के मन में यह पूर्वाग्रह स्पष्ट परिलक्षित हो रहा था कि समिति उनके विरुद्ध कार्य करने के लिए ही आई है। समय-सीमा में स्पष्टीकरण प्राप्त नहीं होने की स्थिति में उच्च शिक्षा विभाग द्वारा एकपक्षीय कार्रवाई की जायेगी ।




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