
भाजपा में टिकट काटने की तैयारी तेज: डेढ़ दर्जन बुजुर्ग विधायकों की छुट्टी तय, सीटों के समीकरण पर मंथन जारी
पटना।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों को लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की प्रमुख घटक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अभी से सीट दर सीट रणनीति तय करने में जुट गई है। पार्टी नेतृत्व द्वारा आंतरिक सर्वे, निजी एजेंसियों की रिपोर्ट और संघ के फीडबैक के आधार पर अब डेढ़ दर्जन से अधिक बुजुर्ग विधायकों के टिकट काटने की तैयारी चल रही है।
सूत्रों की मानें तो पार्टी की निगाहें फिलहाल 70 से 75 वर्ष आयु वाले विधायकों पर टिकी हैं। इनमें से कई ऐसे हैं जो 5 से 8 बार तक विधानसभा पहुंच चुके हैं। पार्टी का मानना है कि इन विधायकों की सक्रियता और जनसम्पर्क में कमी के चलते क्षेत्र में असंतोष बढ़ा है, जिसे आगामी चुनाव में नुकसान का कारण माना जा रहा है।
वरिष्ठ विधायकों में बढ़ी बेचैनी, भावी दावेदार हुए सक्रिय
टिकट कटने की आशंका से वर्तमान विधायकों में हलचल मच गई है। संगठन में मजबूत पकड़ रखने वाले नेताओं की बेचैनी बढ़ गई है, वहीं संभावित दावेदारों ने क्षेत्र में जनसंपर्क तेज कर अपनी गोटियां सेट करना शुरू कर दिया है। कोई समाजिक समीकरण के आधार पर अपनी दावेदारी मजबूत कर रहा है, तो कोई संगठनात्मक योगदान को हथियार बनाकर टिकट की मांग कर रहा है।
पूर्व विधायकों और स्वजनों ने भी कसी कमर
दिलचस्प बात यह है कि 2020 में हार का सामना कर चुके कुछ वरिष्ठ नेता फिर से सक्रिय हो गए हैं। वे या तो स्वयं चुनाव लड़ना चाहते हैं या अपने स्वजन को मैदान में उतारने की योजना बना रहे हैं। इनमें पूर्व मंत्री और पुराने दिग्गज भी शामिल हैं। कुछ ने संकेत दिया है कि अगर पार्टी से टिकट नहीं मिला तो वे निर्दलीय भी चुनाव लड़ सकते हैं।
सीटों की अदला-बदली और “बैठाने” की रणनीति
भाजपा कुछ मौजूदा विधायकों की सीटें बदलने या उन्हें “बैठाने” की रणनीति भी तैयार कर रही है। बताया जा रहा है कि जिन विधायकों के विरुद्ध क्षेत्र में सत्ता विरोधी लहर है, उनकी सीटों पर गठबंधन के तहत सीटों की अदला-बदली की जा सकती है। कुछ को संगठनात्मक जिम्मेदारी देकर चुनावी मैदान से हटाने की भी योजना है।
समाजवार संभावित टिकट कटौती
पहले चरण में जिन विधायकों के टिकट कटने की संभावना है, उनमें अगड़े समाज के छह, पिछड़े एवं अति पिछड़े समाज के छह और अनुसूचित जाति वर्ग के दो विधायकों के नाम प्रमुख रूप से शामिल हैं।
निष्कर्ष:
भाजपा की इस रणनीति से जहां संगठन में नई ऊर्जा और संतुलन लाने की कोशिश की जा रही है, वहीं यह भी देखना दिलचस्प होगा कि टिकट कटौती के बाद पार्टी किस तरह संभावित असंतोष को साध पाती है। राजग के अंदर इस मुद्दे पर गंभीर मंथन जारी है और जल्द ही बड़ा निर्णय सामने आ सकता है।