Rajasthan News : पहलगाम आतंकी हमले में आतंकियों ने पुरुषों को मारा, लेकिन महिलाओं को छोड़ दिया। क्यों?
क्या आतंकी कभी किसी को छोड़ते हैं? नहीं। तो फिर महिलाओं को क्यों छोड़ा गया?
ब्यूरो चीफ संजय मीणा किशोरपुरा झुंझुनू राजस्थान
क्योंकि वो लौटें… और बताएं कि कैसे धर्म पूछा गया, पहचान तय की गई… और फिर मर्दों को चुन-चुनकर सिर में गोली मारी गई।
ये सिर्फ खून खराबा नहीं था, ये था एक सुनियोजित मनोवैज्ञानिक हमला।
आतंकियों का मकसद केवल जान लेना नहीं था —
मकसद था संदेश देना। डर फैलाना। समाज के भीतर खाई चौड़ी करना।
ऐसी खाई जिसमें शक, भय और नफरत पनपे… और लोग एक-दूसरे को घूरें, पूछें— “तुम कौन हो?”
अब सोचिए —
अगर मकसद सिर्फ आतंक फैलाना होता, तो क्या सबको नहीं मारा जाता?
धर्म पूछकर हत्या क्यों की गई?
पुरुषों को ही क्यों टारगेट किया गया?
महिलाओं को छोड़ना क्या मानवीयता थी या एक सोची-समझी चाल?
और फिर वही होता है
हिन्दू-मुस्लिम की बहस में डूबे लोग ये सवाल करना ही भूल जाते हैं कि सुरक्षा में चूक कहाँ हुई?
इतनी भारी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद आतंकी आए कैसे?
इंटेलिजेंस इनपुट कहाँ थे? और अगर थे तो उन्हें नज़रअंदाज़ किसने किया?
असल बात ये है ये सिर्फ आतंकी हमला नहीं, एक गहरी राजनीतिक साजिश थी।
एक ऐसा षड्यंत्र, जिसका उद्देश्य था
भारत को हिन्दू बनाम मुस्लिम की बहस में धकेल देना।
क्योंकि ये बहुत आसान है
धर्म पूछो, मारो, छोड़ दो…
और फिर छोड़ दी गई ज़ुबानों से फैलाओ अफवाह, फैलाओ डर।
यही तो हुआ।
और जब इस डर की आंच तेज़ होगी,
जब सोशल मीडिया पर दो धर्मों की बहस गरम होगी,
तब कोई एक राजनीतिक दल होगा जो हाथ सेंक रहा होगा।
क्योंकि ये तय है
जितना ज़्यादा हिन्दू-मुस्लिम होगा, उतना ही ज़्यादा फायदा उन्हें मिलेगा,
जिनका एजेंडा नफरत से चलता है, विकास से नहीं।
इसलिए हमें सोचना होगा
क्या हम ऐसे ही हर बार बंटते रहेंगे?
क्या हर बार किसी की लाश पर राजनीतिक रोटियां सेंकी जाएंगी?
क्या हर आतंकी हमला हमें बांटने में कामयाब होगा?
यह हमला केवल सुरक्षा तंत्र पर नहीं था। यह हमला था भारत की सामाजिक एकता पर, हमारे विवेक पर।
आतंकी जानबूझकर ऐसा हमला करते हैं, ताकि हिन्दू-मुस्लिम के बीच वैमनस्य फैले,
लोग डरें, नफरत करें… और राजनीतिक लाभ उठाया जा सके।
हम सबको समझना होगा —
ये आतंकी घटना है, न कि किसी धर्म का चेहरा।
इसे हिन्दू बनाम मुस्लिम के रूप में देखना आतंकियों की जीत है।
हमारी हार।
इसलिए इस जाल में न फँसें।
सच को पहचानें।
सोचने की ज़रूरत है…
अब भी अगर नहीं जागे,
तो अगला हमला सिर्फ गोली से नहीं,
हमारी सोच पर होगा।