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Uttarakhand News Fyonli on Phool Dei प्रकृति से जुड़ा खास त्योहार है फूलदेई, फ्योंली के बिना अधूरा माना जाता है पर्व

रिपोर्टर कपिल सक्सैना जिला नैनीताल उत्तराखंड

देवभूमि उत्तराखंड को कुदरत ने खूबसूरत प्राकृतिक संपदाओं से नवाजा है. यहां के कई तीज त्योहार प्रकृति से जुड़े हैं. जिनमें फूलदेई का त्योहार भी शामिल है. यह त्योहार खासकर बच्चों और फूलों से जुड़ा है. फूलों में फ्योंली का अहम स्थान है. जिसके बिना यह त्योहार अधूरा माना जाता है हल्द्वानीः आगामी 15 मार्च को उत्तराखंड में फूलदेई का त्योहार मनाया जाएगा. उत्तराखंड का यह लोकप्रिय और पारंपरिक त्योहार है, जो प्रकृति को समर्पित है. फूलदेई वसंत ऋतु के आगमन का संदेश देती है. यह त्योहार बिना फ्योंली के फूल के अधूरा माना जाता है. फूलदेई पर्व में फ्योंली अहम स्थान रखता है. इनदिनों पहाड़ों में फ्योंली की भरमार देखी जा रही है. हर ओर पीले फूल नजर आ रहे हैं. जो बरबस ही सभी को आकर्षित कर रहा है. दरअसल, सर्दियों का मौसम जब निकल जाता है तो उत्तराखंड के पहाड़ पीले फूल से लकदक हो जाते हैं. इस फूल का नाम है ‘फ्योंली’, फ्योंली के पीले रंग के फूल खिलने का मतलब है, वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक. पहाड़ों में आज कल बुरांश और फ्योंली के फूल खिले हुए हैं. जिसका फूलदेई से खास नाता भी है. फूलदेई आमतौर पर छोटे बच्चों का पर्व है

सुख और समृद्धि का प्रतीक फूलदेई त्योहार उत्तराखंड की गढ़ कुमाऊं संस्कृति की पहचान है. ऐसे में सभी को वसंत और इस त्योहार का इंतजार रहता है. खासकर छोटे बच्चों में फूलदेई को लेकर उत्सुकता बढ़ती जाती है. घर-घर में फूलों की बारिश होती रहे. हर घर सुख-समृद्धि से भरपूर हो. इसी भावना के साथ बच्चे अपने गांव के साथ आस-पास के गांव में जाकर घरों की दहलीज पर फूल गिराते हैं और उस घर के लिए मंगलमय कामना करते हैं. इस बार फूलदेई का त्योहार 15 मार्च को मनाया जाएगा. इस दिन बच्चे फ्योंली, बुरांश के फूलों को चुनकर फूलदेई मनाएंगे. जहां घर की मालकिन इन बच्चों को चावल, गुड़ के साथ दक्षिणा के रूप में रुपए भी देंगे. पहाड़ की बाल पर्व की परंपरा जो मानव और प्रकृति के बीच के पारस्परिक संबंधों का प्रतीक है तो फ्योंली का फूल समृद्धि और खुशहाली का. वक्त के साथ तरीके बदले हैं, लेकिन उत्तराखंड में परंपराएं अब भी जिंदा है. जिसका लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं

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