जब यज्ञ अपमान बना विनाश का कारण संत प्रशांत जी ने सुनाया दक्ष वध का हृदयविदारक प्रसंग
श्रावण मास की सघन भक्ति और आस्था के बीच श्री स्कंद शिव महापुराण कथा के छठे दिवस पर खिरनीबाग स्थित रामलीला मैदान एक बार फिर भक्ति के अथाह सागर में डूब गया। काशी से पधारे संत प्रशांत प्रभु जी महाराज ने आज भगवान शिव की सबसे विकराल लीला—दक्ष वध के पश्चात माता सती के पुनर्जन्म की कथा का अद्भुत वर्णन किया।
कथा के शुभारंभ में विधिवत व्यासपीठ पूजन हुआ, जिसमें श्रद्धालुओं ने भाग लिया और कथा आयोजन समिति के सदस्यों ने पुरोहितों के सान्निध्य में पूजन कार्य संपन्न कराया। बनारस से पधारे आचार्य विवेकानंद शास्त्री एवं आचार्य कार्तिकेय द्विवेदी ने पूजन संपन्न कराया।
दक्ष वध – जब शिव ने भस्म कर दिया अपमान का यज्ञ संत प्रशांत जी ने कहा”दक्ष प्रजापति ने जब भगवान शिव को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया, तब सती ने आत्मदाह कर लिया। भगवान शिव ने जब यह सुना, तो वे शांत नहीं रहे—बल्कि ‘महाकाल’ बन उठे।उन्होंने आगे बताया कि शिव का क्रोध जब सीमा लांघ गया, तब वीरभद्र और भद्रकाली उत्पन्न हुए और यज्ञ मंडप को ध्वस्त कर दिया। दक्ष का सिर काटा गया और अंत में शिव ने उसे बकरे का सिर देकर पुनर्जीवित किया।
यह कथा केवल एक क्रोध कथा नहीं, यह सम्मान की रक्षा की कथा है।”
पार्वती जन्म – जब भक्ति फिर प्रेम बनकर लौटी,इसके पश्चात संत जी ने बताया कि सती ने पार्वती रूप में हिमालयराज और माता मैना के घर जन्म लिया। बचपन से ही उन्हें तप, ध्यान और वैराग्य से लगाव था।
“यह वही आत्मा थी जिसने शिव को छोड़ा नहीं, अपितु फिर से पाने के लिए जन्म लिया।पार्वती ने घोर तपस्या की—धूप, वर्षा, व्रत और मौन व्रत में वर्षों बिताए। अंततः भगवान शिव ने उन्हें स्वीकार किया, और वहीं से शिव-पार्वती विवाह की ओर कथा ने गति ली।
संत प्रशांत जी ने कहा “माता पार्वती हमें यह सिखाती हैं कि प्रेम केवल भावना नहीं, तप और त्याग की पराकाष्ठा है।
कथा स्थल पर बैठे श्रोता मंत्रमुग्ध थे कभी उनकी आंखें नम होतीं, तो कभी “हर हर महादेव” के स्वर से आकाश गूंज उठता। श्रद्धा, शांति और भक्ति का ऐसा संगम कम ही देखने को मिलता है।