Haryana News : राजधानी बेंगलुरु में 10 से 14 फरवरी तक चले एयरो इंडिया 2025 में शामिल दो विमानों की सबसे अधिक चर्चा रही। पहला विमान है एफ- 35 और दूसरा विमान रूस का सुखोई-57 है।
सोशल मीडिया पर इन विमानों की चर्चा के बाद ट्रंप के एलान ने सबका ध्यान खींचा है।

रिपोर्टर तेजपाल कुरुक्षेत्र हरियाणा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पीएम मोदी की मौजूदगी में एफ- 35 फाइटर प्लेन भारत को बेचने की पेशकश की। मौजूदा समय में एफ-35 को दुनिया का सबसे घातक लड़ाकू विमान माना जाता है। रूस का सू-57 इसका कंपटीटर है। मगर कई मायनों में एफ-35 अधिक घातक है।
आइए जानते हैं कि अमेरिका इसे भारत को क्यों बेचना चाहता है। भारत के लिए यह सौदा कितने फायदे का होगा, इस फाइटर प्लेन की खासियत क्या हैं?
अमेरिका क्यों बेचना चाहता है
भारत खुद का स्वदेशी जेट इंजन कावेरी विकसित करने में जुटा है। हाल ही में इस इंजन का रूस में परीक्षण भी किया गया। वहीं फ्रांस की मदद से 5वीं पीढ़ी का जेट इंजन विकसित करने की कोशिश की जा रही है। दोनों देश पांचवीं पीढ़ी के विमान के डिजाइन को भी तैयार करने में जुटे हैं। अगर भारत ने पांचवीं पीढ़ी का इंजन विकसित कर लिया तो लड़ाकू विमान के विकास में वह काफी हद तक आत्मनिर्भर हो सकता है। मगर अमेरिका उससे पहले अपने विमान को बेचना चाहता है।
11 फरवरी को ही खबर आई है कि रूस ने भी भारत को सुखोई एसयू-57 देने की पेशकश की है। रूस ने तो इन विमानों को भारत में तैयार करने का प्रस्ताव भी दिया है। रूस ने भारत को तकनीक ट्रांसफर करने की बात भी कही है। भारत सबसे अधिक हथियार रूस से ही खरीदता है और भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार बाजार है। रूस ने भारत के AMCA कार्यक्रम में भी मदद की पेशकश की है। यही वजह है कि ट्रंप यह डील रूस के हाथों नहीं जाने देना चाहते हैं।
अमेरिका भारत को एफ-35 क्यों बेचना चाहता है? इसकी एक वजह का पता ट्रंप के बयान से भी चलता है। दरअसल, वह सैन्य हथियारों के माध्यम से भारत के साथ होने वाले व्यापार घाटे को पाटना चाहते हैं। ट्रंप ने कहा कि इस साल से हम भारत को कई अरब डॉलर की सैन्य बिक्री बढ़ाएंगे। भारत को एफ- 35 स्टेल्थ लड़ाकू विमान बेचेंगे। ट्रंप ने यह भी कहा कि दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ है। इसके तहत भारत दोनों देशों के बीच व्यापार घाटे को कम करने के लिए अधिक मात्रा में अमेरिकी तेल और गैस का आयात भी करेगा।
कितनी है कीमत?
लॉकहीड के मुताबिक एक एफ-35A की कीमत लगभग 80 मिलियन डॉलर है। एफ-35B की 115 मिलियन और एक-35C की 110 मिलियन डॉलर कीमत है। विमान का संचालन भी बेहद मंहगा है। प्रत्येक F-35 की लागत लगभग 36,000 डॉलर प्रति उड़ान घंटे है। इन सब वजहों से यह दुनिया का सबसे महंगा विमान बन जाता है।
क्या है खासियतें?
एक- 35 फाइटर प्लेन को हवा, जमीन और समुद्र में लड़ने में महारत हासिल है। इजरायल इस विमान का युद्ध में इस्तेमाल करने वाला पहला देश है। इस विमान के पायलट दुनियाभर में खतरनाक से खतरनाक ऑपरेशन को अंजाम देकर सुरक्षित घर लौट सकते हैं। प्लेन वर्टिकल टेकऑफ और लैंडिंग कर सकता है।
विमान एक बार में 2200 किमी की दूरी तय कर सकता है। विमान में एडवांस्ड इलेक्ट्रॉनिकली स्कैंड एरे रडार लगा है। इस रडार से 370 किमी दायरे में मौजूद लक्ष्य का सटीक पता लगा सकता है। विमान उन्नत तकनीक, इलेक्टॉनिक वारफेयर सिस्टम और घातक रडार से लैस है।
एफ-35 के सामने कौन-कौन विमान?
चीन के जे-20, जे-35, रूस का एसयू-57, फ्रांस का राफेल, यूरोप का यूरोफाइटरल और ग्रिपेन को एफ-35 का प्रतिस्पर्धी माना जाता है। मगर कई मामलों में एफ-35 इन विमानों से काफी बेहतर है। रूस के एसयू-57 को ही एफ-35 का करीबी प्रतिस्पर्धी माना जाता है। चीन के पास पांचवीं पीढ़ी के दो स्टेल्थ विमान जे-20 माइटी ड्रैगन और जे-35 हैं। तुर्किये के कान फाइटर प्लेन को भी एफ-35 का प्रतिस्पर्धी माना जाता है। यह भी पांचवीं पीढ़ी का विमान है।
इन देशों के पास एफ-35 फाइटर प्लेन
एक- 35 लाइटिंग विमान को कुछ देश ही अमेरिका से खरीद सकते हैं। मौजूदा समय में ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, जर्मनी, इजरायल, इटली, जापान, नीदरलैंड, नॉर्वे, पोलैंड, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, स्विट्जरलैंड, यूनाइटेड किंगडम को एफ-35 फाइटर जेट बेचने की अनुमति है।
मोदी के बयान में जिक्र नहीं
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने बयान में एफ-35 का जिक्र किया। मगर पीएम मोदी ने अपने संबोधन में एफ-35 का कोई उल्लेख नहीं किया। ज्वाइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी इसका उल्लेख पीएम मोदी ने नहीं किया। विदेश सचिव विक्रम मिसरी का कहना है कि एफ-35 स्टेल्थ लड़ाकू विमान सौदा फिलहाल एक प्रस्ताव है। इस पर कोई औपचारिक प्रक्रिया नहीं चल रही है। उधर, विमान को तैयार करने वाली लॉकहीड मार्टिन ने भी ट्रंप के बयान पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
सरकार से सरकार के बीच होता है सौदा
एफ- 35 विमान को लॉकहीड मार्टिन सीधे किसी देश को बेच नहीं सकती है। इस विमान का सौदा सरकार से सरकार के बीच होता है। पेंटागन इसमें मध्यस्थ की